अब काहे पछताए---------------भजन
बीती उमरिया हरि नाम संग
ऋतु आए ऋतु जाए
दीप जला कर प्रेम का
कौन अँधेरा पाए
नेह कि डोर बंधी तुझसे
मन बावरा कहलाए
जानी नहीं महिमा ईश्वर कि
अब काहे पछताए
हरि - हरि बोले मुख से अपने
ईष्या द्वेष समाए
साची करनी कर के जग में
सब का हित कर जाए
रोग लगा है मोह का ऐसा
दंभी मन घबराए
सुमिरन कर हरि नाम का
हिया को पिया ही भाए
"अरु" भजे हरि नाम को
अब क्या समझे समझाए
आराधना राय "अरु"
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