अर्चना- ईश्वर की


                                 

प्रभू तेरे चरणों की भई मैं दासी-
प्रभू तेरे चरणों की भई मैं दासी-

जल बिन हो गई मीन उदासी
दरस ना पा कर रही मैं प्यासी
तुम्हरे कारण भए हम बनवासी
तेरे बिन प्रभू कुछ कर ना पाती--2


प्रभू तेरे चरणों की भई मैं दासी-2

नयनों में  कजरा नेह का डारूँ
अश्रु की माला बना गले में डारूँ
भक्ति  से पूरित लेप से सावरूँ
ज्ञान का दीप जला मैं पुकारूँ

प्रभू तेरे चरणों की भई मैं दासी-2

आस- निराश का खेल रचाया
पत्थर पर कहो शीशा चटकाया.
काज़ अनोखा जग में अपनाया
परहित कर जीवन  रूप सजाया
प्रभू तेरे चरणों की भई मैं दासी-2.........



सदा करूँ मैं आस तिहारी
ओ गिरधर मन के बिहारी
प्रभू तुझ पर जीवन हूँ हारी
नाथ कहूँ क्या अरु सब वारी
प्रभू तेरे चरणों की भई मैं दासी-2.........

आराधना राय "अरु"





Comments

  1. सर्वमयी-सर्वव्यापक ईश्वर की सुन्दर स्तुति! साभार! अनुराधा जी!
    भारतीय साहित्य एवं संस्कृति

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    1. धन्यवाद संजय कुमार जी आपका आभार

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  2. कवितायी प्रभु वंदना , साकार की है बधाई

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    1. नमन केवल प्रयास मात्र है,,,, आभार आपका व्यक्त करना कठिन है

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