गीतों की बाती




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आंसुओं से पग पग धो कर कब से आई रे
गीतों की बातीआसुओं की माला पहनाई रे
जिन नयनों से किया दरस पिया का
आजहू रो - रो के मन के दिए जलाए 
क्यों मन को अब कोई ठोर ना दिखता
बावरा हो कर मन आस क्यों जगाए रे
मिटटी की मूरत माटी की गति ही पाए
रह गया मन के संबधो का पतला धागा
सब कुछ स्मृति के नीर से बहता जाए रे
पागल मनवा सुनता नहीं निज मन की
आंसुओं से पग पग धो कर कब से आई रे
गीतों की बातीआसुओं की माला पहनाई रे
आराधना राय अरु

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