राधा- कृष्णस्वप्न सलोने
धीर-धरम को रीत बना कर, सपने की आस जगलो।।
कंचन देह बना के देखि सुमन ,सुधा,हर्षा के भी देखे
पैरों के कांटे भी देखे, हाथो के छाले दुख के भी देखे।।
रूप नवल है ,सोने जैसा,हो जाना है मिटटी के जैसा
कर्म- विधान इक अपना लो, जीवन को कर्मठ बना लो।।
आराधाना राय अरु
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