मैंने रंग लीनी पीली चुनरिया श्याम तेरे नाम की मन रंग लीना तेरे प्रेम में ये दुनियाँ किस काम की रोके है मोहे सगरी नगरिया राग -द्वेष बेकाम से सुने मन में महल बनाया और पूजा की तेरे नाम की ........... अरु
साभार गुगल प्रसंग---- कान्हा जब बिरज छोड़ जाते है तेरी मुरलिया सुन कर राधा लोक ये भूल चली मधुबन में सखि राधा प्यारी मन को छोड़ चली श्याम सखि अब कौन पुकारे कान्हा जल बिंदु बने होठों पर हँसी आई की तूम से हर आस जुड़ी पाई करुणमयी बादल सा कभी लगे माँ के आँचल सा पागल मनवा रीत ना जाने अजब सी प्रीत भरे तड़प के बोले बोल कोयलिया श्यामा क्या रंग भरे काला सधन मेध ये बोले, कैसो - कैसो दरस मिले आराधना राय
आंसुओं से पग पग धो कर कब से आई रे गीतों की बातीआसुओं की माला पहनाई रे जिन नयनों से किया दरस पिया का आजहू रो - रो के मन के दिए जलाए क्यों मन को अब कोई ठोर ना दिखता बावरा हो कर मन आस क्यों जगाए रे मिटटी की मूरत माटी की गति ही पाए रह गया मन के संबधो का पतला धागा सब कुछ स्मृति के नीर से बहता जाए रे पागल मनवा सुनता नहीं निज मन की आंसुओं से पग पग धो कर कब से आई रे गीतों की बातीआसुओं की माला पहनाई रे आराधना राय अरु
गुगलसाभार आध्यात्म कहता है राधा ही कृष्ण थी कृष्ण राधा कैसे इसी प्रश्न को राधा ने भी दोहराया था सबसे बड़ा है प्रश्न कौन है हम परिदृश्य-----श्याम वर्णी सो रहे थे, मंद मंद से समीर में खो रहे थे, भोर का प्रथम आगमन था, वहाँ कलियों ने मुख ना देखा था , गोपियाँ कलियों ने मुख ना देखा था । झरझर करती नीलमा आई ...
नव रंग रस को बोल कर कोयलिया कहाँ चली पीहू- पिहू मचा के शोर तू कित उड़ - उड़ चली कारे -कारे बादरा तू भी झूम ले संग -संग कभी ना तू मुँह से बोल बोलियों पी आ गए मेरे सखि मुख से बोलूँगी अखियों से अपने रस को धोलुंगी हिय से हिय कि बात बनमाल लिए कुंज में डोलूँगी पी के दरस कि प्रेम दीवानी बन वन वन ना डोलूँगी "अरु" पिय कि पीर संग नित तुम संग ना यूँ बोलूगी आराधना राय "अरु"